हम बना रहे हैं सांस्कृतिक गतिविधियों का महल
मान्यवर,
कला संगम से आप परिचित होगें ही। संस्था के संरक्षक इसके धरोहर हैं, तो कलाकार सदस्य इसकी नींव। सभी के प्रयास से हम गिरिडीह जैसे छोटे शहर में सांस्कृतिक गतिविधियोें का महल बना रहे हैं। जिसका संचालन हम संगीत के मान्य विधियों का अनुपालन करते हुए कर रहे हैं। हमारी संस्था नृत्य, गायन, वादन, नाटक की भारतीय परम्परा को जीवित रखने हेतु छोटे-छोटे कार्यक्रमों के माध्यम से कलाकारों को मंच प्रदान करने का काम करती है। निश्चित रूप से इससे स्थानीय कलाकारांे को बढ़ावा मिलेगा और राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि में सहायक होगी तथा इससे कला माध्यमों को एक नया आयाम मिलेगा। इससे हम अपने आप को अपनी-अपनी संस्कृति को जानेंगे। रंगमंच हमें विभिन्न संस्कृतियों से जोड़ता है, जिससे हम अपनी समृद्ध संस्कृति और समृद्ध राष्ट्र का अनुभव करते हैं।
भारत विविधताओं का देश है। भारत बहुभाषा की संस्कृतियों का देश है। इसलिए हम 18 वर्षों से लगातार बहुभाषी नाटक प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं, क्योंकि नाटक सृजन और साहित्य का मंचन है। नाटक हमारे अंतरंग भावों और मानवीय संवेदनाओं की समृद्धि को प्रकट करता है। परन्तु आज खासकर हिन्दी रंगमंच को कोई संरक्षण प्रदान नहीं करता। कालांतर में राजे रजवाड़ों में संगीत नाटक चलता था।
हमारा प्रयास होगा कि पाठ्य विषयों में नाटक विषय बने। झारखण्ड में संगीत अकादमी का गठन हो। हर जिला मुख्यालय में रंगशाला कला भवन बनेे। शनिपरब के माध्यम से सरकार ने लोक संस्कृति को बचाने का अच्छा कार्यक्रम लागू किया है।
हम सक्रिय हैं सांस्कृतिक विद्या को पुनर्जीवित करने के लिए और इसके लिए निश्चय ही मुझे शहर के प्रबुद्ध साहित्य प्रेमियों, उद्योगपतियों, इष्ट मित्रों के सहयोग की आवश्यकता होती है। समाज में चंदा के नाम से ही एक भ्रांति फैल जाती है, निश्चय ही आयोजक को संदेह का शिकार होना पड़ता है। उपहास, आलोचना का शिकार होना पड़ता है। यदि आप आलोचना से डर गए तो कोई उपकारी कार्य भी नहीं कर पायेंगे। मुझे भी इसका शिकार होना पड़ता है। परन्तु किसी कवि ने ठीक ही कहा है,
’मुझे कैचियों का भय नहीं
कि मेरे उड़ने के पर कतर दे,
मैं परों से नहीं हौसलांे से उड़ा करता हूँ।’
कार्यक्रमों के आयोजन में सहयोग प्रदान करने वाले समझदार और उच्च विचार वालों के प्रति हम आभार व्यक्त करते हैं, जिनके सहयोग से हम यह आयोजन करने में सफल हो रहे हैं। विश्वास दिलाता हूं कि आपका सहयोग का समुचित सद्उपयोग होता है।
मैं अपने आलोचनाओं के बीच इतना ही कह सकता हूँ,
‘ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हैं, बस इतना ही काफी है।’
‘अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे
क्योंकि, जिसकी जितनी जरूरत थी
उसने उतना ही पहचाना मुझे।’
-सतीश कुंदन
सचिव
कला संगम, गिरिडीह