कला संगम 60 साल से रंगमंच को कर रहा समृद्ध : सतीश कुंदन
प्रिय साथियों,
रंगनमन
आपके हाथ में यह स्मारिका सौंपते हुए मुझे अपार हर्ष हो रहा है कि हम लगातार 10 वर्षों से यह सांस्कृतिक पत्रिका ‘सर्जना’ का प्रकाशन आपके सहयोग से कर पा रहे हैं।
कला संगम अपने स्थापना का 60वां साल मना रहा है। कला संगम ने 60 साल की यात्रा में रंगमंच की समृद्धि के लिए, इतिहास के लिए कई उल्लेखनीय मकाम हासिल किए हैं। प्रो. रघुनंदन प्यासा, रवींद्र सिंह, अबु अख्तर, गुरु वीरेंद्र नारायण सिंह, पंडित शंभुदयाल केडिया, गुरु धनंजय नारायण सिंह के सार्थक प्रयास का प्रतिफल है कि आज कला संगम पूरे देश के सांस्कृतिक क्षितिज पर अपना परचम लहराने में कामयाब रहा है। कला संगम रूपी वटवृक्ष से कई सांस्कृतिक लताएं प्रस्फुटित होकर सांस्कृतिक अलख गिरिडीह में जगा रही हैं। यह कला संगम की उपलब्धि की एक छोटी सी वानगी है।
1999 में मुझे सचिव की जिम्मेवारी दी गयी। 2002 में कला संगम ने झारखंड के सांस्कृतिक इतिहास का पन्ना ‘झारखंड हिन्दी नाट्य महोत्सव 2000 से लिखना प्रारंभ किया और आज हम 22वीं अखिल भारतीय बहुभाषी नाटक, लोकनृत्य, शास्त्रीय नृत्य प्रतियोगिता आयोजित कर रहे हैं। निःसंदेह गिरिडीह जैसे शहर में इस प्रकार का आयोजन चुनौती भरा है।
‘‘माना कि औरों के मुकाबले ज्यादा
पाया नहीं हमने,
खुद गिरते संभलते रहे पर किसी
को गिराया नहीं हमने।
किसी भी आयोजन के लिए, सामाजिक कार्य के लिए किसी न किसी को आगे आना ही होता है और उसे समाज के द्वारा दी जा रही तोहमतें और आशीर्वाद दोनों ही मिलते हैं। खासकर जब आप किसी आयोजन में आर्थिक सहयोग के लिए निकलते हैं तो वह तबका जिसने कभी सामाजिक जीवन नहीं जिया, जिसने कभी कोई सार्वजनिक जिम्मेदारी का वहन नहीं किया, वह आप पर ज्यादा छींटाकशी करेंगे और निःसंदेह मुझे इसका शिकार होना पड़ता रहा है। कुछ लोग टांग खींचने में लगे रहते हैं, लेकिन किसी शायर ने कहा है,
ना मैं गिरा और न ही मेरी
उम्मीदों के मीनार गिरे,
कुछ लोग मुझे गिराने में कई बार गिरे।
मैं उम्मीदों में जीता हूं, रंगमंच के लिए जीता हूं, कला संगम को गिरिडीह से बाहर निकालकर देश के पटल पर रखने की कोशिश कर रहा हूं। हमारी कला टीम ने नाटक के क्षेत्र में अपनी पहचान की यात्रा शुरू ही की है कि प्रथम पुरस्कार लाने का गौरव हासिल हुआ है। हमने शास्त्रीय नृत्य में अपनी जगह आरक्षित करानी शुरू कर दी है।
विगत वर्ष मेरी अस्वस्थता के कारण नाट्य, नृत्य महोत्सव नहीं हो पाया। इसका मुझे मलाल रहा। इस बार भी मुझे बर्फीली शर्द हवाओं ने कार्यक्रम न करने से रोकना चाहा, लेकिन मैंने कहा,
हवाओं से कह दो अपनी हद में रहें।
हम परों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं।
मेरी लगातार कोशिश है कि सांस्कृतिक जिम्मेदारियों का वहन करने वाली द्वितीय पीढ़ी तैयार हो ताकि यह रंग यात्रा सफलता पूर्वक जारी रहे।
इस वर्ष अपने स्थापना के 60वें वर्ष में देश के लब्ध प्रतिष्ठित कलाकारों द्वारा मंचित किये गये नाटकों को आपके शहर में प्रस्तुत करने का अवसर मिला है। हम इस बार 22वां अखिल भारतीय नाटक, लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य का आयोजन कर रहे हैं। इस आयोजन में गिरिडीह की सांस्कृतिक धरा को उर्वर बनाने के लिए हमेशा प्रोत्साहित करने वाले अपने सहयोगियों का आभार प्रदर्शित करते हैं, जिनके मार्गदर्शन से कला संगम की यह यात्रा जारी है।
कला के साथ साहित्य की सृमद्धि की झलक तथा अपनी गतिविधियों को आपके समक्ष परोसने के लिए स्मारिका के सहारे आपके समक्ष उपस्थित हैं। आशा है आपका प्यार और सहयोग हमें हमेशा प्राप्त होता रहेगा। जय रंगकर्म।
-सतीश कुंदन
सचिव
कला संगम, गिरिडीह